पिछले हफ्ते मैंने मुम्बई एवं गोवा की यात्रा की। गोवा में जब मैं अपने दोस्तों के साथ घूम रहा था तब काफी तेज धुप से सबके चेहरे काले पड़ गए। इसी झुलसाने वाली धुप से मुझे अपनी आगरा यात्रा की याद आ गयी करीब साढ़े तीन साल पहले की।
तो बात है मई 2012 की। मैं अपने परिवार के साथ आगरा और दिल्ली के लिए निकला था। जमशेदपुर से आगरा हम ट्रेन से पहुचे और होटल में प्रवेश किया। हम दिन के ग्यारह बजे ताजमहल देखने निकल पड़े। होटल के अंदर गर्मी का पता नही चला पर बाहर में अड़तालिस डिग्री वाली तपिश का एहसास हुआ। ऑटो में जब हम बैठे थे तब लू के थपेड़ो से मेरे गले और हाथो में मात्र दो घंटे के अंदर
घमौरी पड़ गए। तीन किमी की यात्रा कर हम पहले आगरा का किला पहुचे।
कहा जाता है की अगर आपको ताजमहल देखना है तो पहले आगरा का किला देखिये फिर ताज का दीदार कीजिये। सो हमने वैसा ही किया।
आगरा का किला भारतवर्ष में मुग़लो के शासन का प्रतीक है एवं इसे अकबर ने बनावाया था।
हाँ, ये वही सिंहासन का फोटो है जिसपे मुग़ल शासक बैठा करते थे। यहाँ से आप ताज को एक खिड़की के आर पार से देख सकते हैं। इसी कमरे में औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहाँ को ही बंधक बना के रख लिया था और उसी खिड़की से शाहजहाँ अपनी बेगम की याद में बनाया ताज को निहारा करता था।
इस चित्र को आप देख रहे हैं? किले से ताज का दृश्य कुछ ऐसा ही दिखाई पड़ता है।
यूँ तो किला काफी बड़े भूभाग में फैला हुआ है तथा सभी हिस्सों को बारीकी से देखने एवं समझने में आपको काफी मेहनत करना पड़ेगा। एक तो ऊपर से भीषण गर्मी से हाल बुरा था। इसीलिए जल्दी जल्दी हम किले का भ्रमण करने के बाद ताज की ओर चल पड़े।
ताज वहां से कुछ ही मिनट की दुरी पे था। ताज पहुचने से पहले ही काफी पैदल चलना पड़ा। रास्ते में निम्बू पानी वाले, ठंडा पानी वाले, कोल्ड ड्रिंक्स वाले की लंबी कतार लगी थी। मुझे तो आश्चर्य इस बात की थी की मैं ही अकेला प्राणी नहीं था इस सुलगती धुप में ताज को देखने के लिए। सचमुच क्या अद्भुत है ये ईमारत जिसे देखने के लिए हजारो किमी दूर से लोग आये हैं।
कुछ दूर आगे जाने के बाद हम एक द्वार पर पहुचे जहाँ से हमें ताज का प्रथम दृश्य प्राप्त हुआ। ओह! क्या नजारा था! इस चमकती धुप में वो सपनो की मूरत सी खड़ी थी! सफ़ेद संगमरमर की बनी हुई जिससे मेरी नजर उठ नहीं पा रही थी। पलकों का झपकना ही बंद सा हो गया था। आगे बढ़ने के बाद चबूतरे पे जाने के लिए जूता खोलना पड़ा। फर्श तो आग जैसी गर्म थी जिसपे चलना दहकती अंगारो पे चलने के बराबर ही था। कुछ बुजुर्ग लोग खाली पैर नहीं चल पा रहे थे तो उन्होंने पैरों में पॉलिथीन बांधकर चलना शूरू किया। मैं सोच रहा था की गर्मी में आगरा आकर मैंने बहुत बड़ी बेवकूफी की है। फिर भी हमने वहाँ दो घंटे बिता ही लिए।
ताज के अंदर जाने पर वहाँ शाहजहाँ और मुमताज का नकली मकबरा दिखाई पड़ा क्योकि असली वाला पर्यटको के लिए सुलभ नहीं है। यहाँ पर गर्मी से थोड़ी राहत मिली थी।
ताज के पिछले हिस्से में जाने से यमुना की पतली धारा थी जो किसी ज़माने में काफी विकराल हुआ करती थी। सुखी सुखी और थोड़ी थोड़ी मध्यम धारा थी यमुना की। ताज के पुरे परिसर में दो घंटे बिताने के बाद हम वापस होटल लौट गए।
पहले आगरा का किला देख लेते हैं---------
अब झुलसाती धूप में ताज का दीदार कीजिये
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वाह ताज
ReplyDelete:o
ReplyDeleteThank you sir !!!
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